पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३२६

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2 प्राणप्रिय के रूठने की क्यो मिलो है सूचना यह ? हो गयी क्यो आज उनको हिय दशा यो उन्ममा यह गेहदानी की चिरत्ति की हो रही क्यो व्यजना यह ? शिथिल, दोना, पड़ गयी क्यो मम अतृप्त उडान, रे कवि ? लिख विरह के मान। तप्त प्राणो ने निरन्तर कौन-सी विपदान झेली। किन्तु उलपी हो रही फिर भी अभी तक यह पहेली, सतत अन्वेपण-क्रिया है बन गयो जीवन - राहेली, आह । क्या यो ही पडे रह जायेंगे अरमान, रे कवि ? लिस विरह के गाना - आन - वन के सघन झुरमुट से पपीह ने पुकारा, 'पी काहाँ मैने तडप कर शून्य दिष्ट्-मण्डल मिहारा, पी कहाँ ? प्यागे दृगो का है कहा दशन-सहारा ? क्यो नही पहुँमा यहा तक निरत मेग ध्यान, रे कवि, लिस विरह के मान आज इस धूभिल घड़ी में कौन यह सन्देश लाया साक्ष आयी, किन्तु उनका गज रथ अब तक न आया । ढीठ मन यह पूछता है, यथो उन्हें अब तक न पामा ? क्या बताऊँ क्या नहीं आये सजन रसखान, रे कवि? लिस विरह के गान । श्रीपणा युटीर, कानपुर शिवम्बर १९५६ हम पिपायी जनम क 1.1