पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३२८

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मान कसा? प्राण मेरे, चरण - चुम्बन - दान में अब मान कैसा? शिमा केसी ? खीझ क्यो? यह विरति नतो ? अभिमान मेरे, मान मत ठानो, न तानो भृकुटिया को नाप, वल्लभ, पहुंचने दो चरण-तल तक ये अबर मम शुष्क, निष्प्रभ, मत हटाओ, मत हटाओ, मत हटाओ, पद-कमल अब, कर रहे चीत्वार है यो प्राण ये नादान मेरे, माग कैसा प्राण मेरे, ओ रालोने, हो गया है कोन सा अपराध भारी, जो, चरण-आराधना यो तष्टपती है यह निचागे' हो गया है विश्व सूना देख कर यह हठ तुम्हारी, कारपना मनी हुई है, भाव है गुन-सान भैरे, मान कसा? प्राण मेरे, जगत-प्रागण एक हग में हो गया है पूण मुविजित, हुलसतो है यह घरा मृदु नरण तल के परस से नित, सप्त प्यासे, शुष्क रज-कण हो रहे है भरम मे नित, आज, फिर भी, नसा रहेगे ये अवर नियमाण मेरे? मान कैसा प्राण मेरे, वरजते हो क्यो दृगो से चरण-रत आराधना को ? फलवती होने न दोगे नया निरन्तर साधना को निठुर, ठुकराओ न मेरो इन दोना यानना की, पद-परस से खिल उठेगे निषट मुरझे गान मेरे, मान बैसा? प्राण मेरे, योग पुटीर, रानपुर म पिपयो जनम 102