पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३२९

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कव मिलेगे ध्रुव चरण वे ? चलित चरणो की जगह अब कब मिलेंगे ध्रुव चरण वे ? युग-युगान्तर के समाश्रय, वे अडिग, अशरण शरण वे ? इधर देखा, उबर झांका मिल गये कुछ चपल लोचन, मे समझ बैठा कि मुझको मिल गये सकट विमोचन, किन्तु करता हूँ विगत का आज ना सिंहावलोकन, देवता हूँ तब अनस्थिर भावना के आचरण ये, प्राण के उच्छ्वास मे में खीच लाया शूल कितने । और इस नि श्यास म उड-उड गये है फूल कितने । दान में स्मृति-रूप कण्टक मिल गये हैं आज इतने - कि उन सुमनो के हुए है शूल ही नव सस्करण ये, नेत्र विस्फारित किये, जल, यल, असीमाकाश म नित - फिर रहा हूँ बोजता कुछ चीज, मै व्याकुल, प्रचित, भाल रेखा पर हुई है चिर विफलता छाप अकित, जिकल अन्वेपण-मुरति को कब पारेंगे पिय घरण वे ? दीप लघु मै, तब अलख कर से समय-नद में प्रवाहित नित्यप्रति प्रतिकूलता के प्रयल झोको से प्रताडित, टिमटिमाता बह रहा हूँ मै जनग का हो निराश्रिन, दोप-सम्पुट क्व बनेंगो कर अंगुलिया गनहरण । यौन जाने, यह विकम्मित दीप तुम्ने यत्र बहाया ? क्या पता तुमने इस फिर वय वुझाया कत्र जगामा है पता इतना कि इराने आज तक प्रथय न पाया, हैं बहाये जा रह इसको प्रवाही उपकरण ये, ३०४ 7 हम पिपरायी जनम