पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३३३

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जीवन के चौराहे प- चैठे है छलिया स्तिने ? तुमको ठग लिया बताना किसवे मृदु मन्द स्मित ने आती जातो रहती है पतझड को आवुल पडियाँ, उगती झरती रहती है पत्तियाँ और पखडिया, निशि दिन यह पवन निगोडी सन - सन यहती रहती है, छिन -छिन टल्ला दे-दे के अपनी कहती रहती है, इसको कहने अपनी- दुख-सुख की कथा पुरानी, तुम क्यो व्यानुल होते हा ऐ जी नवीन नव ज्ञानी दा जीवन अटपटी पहेली, इसको बूझो सुलझाओ, हिय को उलगी गासी का मत और अधिक उलझाओ, मत ठगे ठगे दुनिया चे वाजारों में यो पत्थर को परमैया उलझे हीरक हारो म, से घूमा हम निपायी जनम