पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३३४

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हिम वे सरीदनेवाले ये हाते पाही-पाही है, जो बिना दाम ले ल, सौदागर यहा नहीं दिस्ट्रिपट जैल, गाजापुर ६ फरसरी १९३१ केश पाश ससस्मरण नोदना ओ सन्ध्ये, ओ दूर कितिज में दुछ बुबुम-रखने सन्ध्ये, वृक्षों के मिस उग्रीवित सी, उत्सुक आरावते राध्ये, श्यामा विध्य-गृखलाओ के वाली सन्ध्ये, ओ रजिता मेघ माला के फुरल हास याली सन्ध्ये, मतवाली,छिन-भर उजियाली, फिर फाली काली सन्ध्ये, गत सस्मरण प्रणोदिनि सन्ध्ये यो अतीत वाली सन्ध्ये। ज्या प्रणोदना आज भरो हो, हुम मेरे अतरतर मै? क्या सिंहावलोविनी गतिगति उकसायी गन अभ्यर में? हम विपाया जनम के