पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३४४

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कल ललित चरण न्यामोरी- दर दव शिहरे यह हियरा, झन-सन-गधु नपुर ध्वनि से उमहे ठाब रह-रह जियरा। फितना मद भरा हुआ है क्या मदिरा है सस्मृति में, शितना मघवा भर लायो तुम अपनी स्वर अवृति मे यदि नेह नही ती यो हो- निरपेक्ष भावना लेके, मुछ हाल देखती जाओ- मेरे हिय के छाले के। घी गणेश बुटोर, कानपुर १२ अवहबर १९३१ R VA अस्तित्व मेरा समाधय शून्य जीवन, है विफल व्यक्तित्व मेरा आज कोलाहल भयानक कर उठा अस्तित्व मेरा। आन्त हूँ, प्रिय, श्रान्त हूँ मैं, चिर व्यथा - आक्रान्त हूँ मैं, नेह - नगरी को डगर मे, अति भ्रमित दिग्धान्त हूँ मैं, सो गया मिरा ठौर, बोलो वह गन स्वामित्व मेरा? है विमल व्यक्तित्व मेरा । हम विएशयो जनम २१९