पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

किरकिरी अरी, पड़ गयी है ककरो-मी मेरी आखो मे, रानो, बहता ही आता है रह-रह, देखो वूट-बूंद पानी, कैकराहट है, अकुलाहट है, नैनो मे लाली भी है, आशा है, तृष्णा है, विप है, आग्यो मे है नादानो । तुमने मेरी इन आँखो में अपने दृग को मैनो से - आत्म मरण का अजन आजा, सुमुखि, अत्रीले जैनो से म्वात्मापण मिस अह भाव मम, मरण-वरण कर नुका, प्रिये, अगे वह गया है 'अहमिति' जड हृदय-सिंधु के फैनो से। अब तो वन चिन्मयो, मृण्मयि, आओ मन्दिर मे अपने, रुतिर, चिरन्तन दरस-परस से सफठ करो मेरे सपने, अगना विरल, मृदुल अचल ले गयन-किरकिरी दूर करो, बहुत प्रतीक्षा की है अपलक मेरे उत्सुक जप-तप ने। तव स्नेहाराधन मिस मुसको तत्त्व - दग्स , आभास मिला, देश - काल के परे असीमित मुझे रहस्य - विकास मिला, कराण मरण मे, प्राण-हरण में, मृत्यु सतरण-भाव मिला, मरण-क्षितिज को और मुझे यह चिरजोयन आमाश गिला । सौ-सी बार चित्य मरसार भी मैने चिर जोन पाया, अति निशीथ चिन्ता-जजर भी मै 'नवीन' ही कहलाया, हिय को गसल-मसलकर भी मे चिर-रस हूँ, री रानी, गुडवो जागृति जीवन में भी वरिपन गपना ही भाया । मान मत करो, न म्छो हम में दुग्पियो में, रानी, मही रोप-भाजन होती है अपनी को कुछ नादानो' हम विपपायी गनमय मान ३२१ ४१