पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३५१

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कॉव । काँव। काँव 1 काय 11 करो न, बागा, सजन के सूने हृदय म कौन-सा अनुराग जाया कावा कांप1 करो न कागा। पुरातन ज्ञान-संचय तुम अत्तीत स्वरूप - निश्चय, याज दो, न, भविष्य परिचय ? हा, कहो तो, कव, किधर को, चल प; गाम अभागा । कावा फाँव । करोन कागा ! विरति - कुशटिका उठी यह स्मरण - अन्तर में जुटो यह, लगन खोबी - सी लुटी यह, दोस पडता ही नहीं है अब सुगति का बबल-धागा, काय कावा करोन कागा। कैंप रहा है हिय इधर यह उठा रहा है एक स्थर यह, कह रही आगा मिहर यह, मु। अयाचित ने, कहो तो, क्र मिलन-वरदान मागा' मावा का। करोन काया। पाँसो, अक्तूबर १९३५ १.२६ हम विषपायापास