पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३५२

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छोटे की स्मृति मे युवक हृदय की प्रथम प्यास सम, लगकर कहा गये तुम प्रियवर २ यह इतनी विस्मृति अपनो की, कि तुम भुला के अपना घर । वीत मये ये बरस घनेरे, कई-कई सौ साल सवेरे, सहसा आज चड़े स्मति-रथ पर,- लालन तुम अये हिय मेरे, आहे। समप पह इतना बीता, तर भी पता है हिय थर-थर, कैसे करूँ दुलार, टोले, भव, जब तुम भाये अपने 7 गमनागमन, मरण जीवन यह, मह सयोग वियोग निरन्तर- उद्भप, प्रलय, काल गति-चन्धन, प्राण-दान सहार कौन कर रहा है कोढा यह ? कीन खेलता है गो अहह । पिछुडन, मिलन, बनावर किसने- भर दी है जग मे पीया यह अन्धाधुन्ध ? प्रिय, यह न पहूंगा, जदपि खित है तुम विन अन्तर, हम विषपायी जाम व घर भयकर। NRN