पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३५५

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? 7 7 मिलन साध यह इतनी क्यों? वे कुछ सकुचाकर यो बोले गिलन साथ यह इतनी बयो। इस छोटे से योधन-क्षण में गलबहियाँएँ गलनहियाएँ कितनी हा? जीवन के छोटे-गे किसलय-सम्पुट मे न समायेगा- मह अमाप गयोग-मधुर-रम, तर फिर आहे इतनी श्या' संच रहते ही, प्रिय, डोटा है जग के जीवन का दोना, यहाँ भरा है विप्रयोग से उसका हर कोना - कोना इस दोने में लगी हुई हैं सीक दुस के शूलो की, यहाँ वहा सामीप्य ? यहाँ है केवल रोना ही रोना । इस अस्थिर, अति गतिमय, चचल जीवन मे सयोग कहाँ अक्षर सम्मिलनोत्सुकता का इस क्षर मे उपभोग कहा जीवन है भव्यक्त भाव का व्यक्त वियोग स्वरूप स्थय, निगुणता मे विलग सगुण का फैल रहा दुख-भोग यहाँ । पिय-गंजोग तो अचिर नहीं है, पर जीवन है अचिर सदा, फिर क्षणभगुर में किमि प्रकटे कालातीत नेह सुखदा निय - मामीप्य - लालसा तो नित प्राण-प्रमन्थन करती है। पीवम की खिलमिल झांकी तो मिल जाती है यदा - कदा । पर, अनादि की मिलन आस यह अन्तवन्त हो जाये क्यो । इम जीवन का यह सूनापन राधन निराशा लाये गयो । यदि है समय सकोच यहाँ पर तो फिर यूही सही, राजन, वा देखेंगे, जहाँ काल यह सीमित हो न सताय या। वो मेरो अभिलापानी के सोपाना पर खडे - खडे- झारी लिये खूब ढरकाना गुरस बिन्दु तुम पढे - बडे, ? हम विपश नमक