पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३६०

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लई झगड़ झगड अकुर ये निकले नस के यि को चौर, कारागृह में भी जा पहुंचा, यह अबगी धमत 'समीर। सिहर ठिठुरती सोती हुई, भावनाएँ जग आयी नवल जागरण मिरा बागा-कण मे, नव मोहकता छायी है, जगती की अंगडाई में है, उखा जीवन हाला, चनल मृदुल दृगचल का यह छलक मादक सखि, यह गदिर वेदना, मेरे हिय को करती महा अबौर, कारागृह में भी आ पहुँना, यह ऊवमी वसन्त 'समीर। प्याला, मेरे बदी गृह के तस्बर नव कम्पन से कम्पित है, अलस थकित दिमण्डल मेरा, यह हो रहा विजृम्भित है, मण्डित है अलसानी कोटा, द्रुम को पत्ती-पत्ती म, आसव पोडा, रण को रतो- रत्ती म हम शिषपायी जनम का २५५