पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३६२

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अलि मपने म तो आ जाओ, पहने नव वामन्ती चीर, देखों, कारा में भी आया, बगन्त यह ऊबमो समीर, इतना तो समझो कि बसन्ती, दिन वे अपने ही से है, यही समय लो कि इस व्यथा के, छिन ये सपने ही-से है, इसको सपना ही समये, हुल आओ मेरे देश अली, स्वप्निल अवगुण्ठन मे छुपके, आ जाओ सुकुमार लली, आज छपीली छटा दिखा दो, गपने को गरिता के तौर, कारा मैं भी थापा, देखो, झयमी यमन्त समीर। ऋतु पम्मित हिम लगा-गगन मे, नभ गगा-सी यह आगो, विकिणियो को क्ल-कल गाया, तपित श्रवण में यह जाओ, वयकर कुछ क्षण तो रह जाडी, मानम सर म तुम मरिते, जरा देर तो इपर मोष्ट दी, निज प्रपाह.हे रम मन्ति, हम विषपाली जनमक ३