पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३६३

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माम म बागनी हिार गम्भौर, आग म आया है नगा नमोर। पह ख्यमो गगन यहाँ गुना - मूना • गा मातु रान्न का अरे भावने इस मूने म, भी मन को ठग न यही, पाग यी पानोर माधवर गटा रहा गर गहाँ-महाँ, मजात परपना - गम मे तुमगा, वहाँ, वाम ती नवल क्षणो में, दामिनि छलका दो कुछ नीर, देसो कारा यह ऊधमी वसन्त 3 म आया है, समौर। मन्द ज्योति प्रिय घौमी पड़ रही आज मेरे प्रदीप श्री बाती, वह रट जाय पदाचित् मेरे याना-पथ को थाती, पथ सुनसान, कटीला, टेढा, पथरीला, अशात, लक्ष्य दूर, वह भ्रमित पथिक, गग में छायी चिर रात, ३३८ मग विषपाया नमन के