पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७०

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डुवकी आज यह वाँकी छबि वह उटा अटपटो स्मरण दिगन्त में उदित हुई सहमा, मोतो टपकाते मद्य मान ये तुम्हारे केश बरसा गये हिग में रस-पुई महसा, स्नानोत्तर शीतलता युत पाणि पल्लयो के स्पश की स्मृति से कंपकपी गई सहसा अधर-सम्पुटो के मिलन की बेला, कुमारि, भोली-भोली आयें हुई छुई-मई सहमा । विह्वल कम्पन युत्त आलिंगन वह, वह, अन्तिम मिलन, वह अकृति हदय की,- निजत्य विस्मृति के वे क्षण अनमोल, वह घटिका मुहूसमयी मृदू आत्म लय की, अस्फुट वचन कलिकामो को सुगन्ध वह, अश्रु-सियत वाणी अनुनय फो विनय की, आज इन सन की अतीत स्मृति जाग उठी, विया एका एक उठी विगित प्रणय को याद पड़ता है यह दिन, वह घटो पत्र फुछ क्षण से मेरी सौभाग्य रेख चमकी, उदित हो गये पुष्य, प्रमुदिन यि, युले भाग्य, हुई पूरी साध जनम-जनम मी। समिपपायी जनमक ४४