पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७१

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गोर म बिठा गे, युनगये, गूब याद है बिगार में थी गुप-चुप घग्म-पग्म को डोटे में योग हृदय में, भगे हैं गई बारों उम पुगतन भेद पी भग्म को। हिन्दिरटन गाह १० प्रगत 0 मत तोडो गहरा सपना कुछ मुस पी परछाही से, कुछ दुस से, कुछ आशा से, नुछ उनको हो-नाही मै, कुछ युण्टिन अभिलाषा से, हिंय टूक टूर तो था ही, इतने म पन घिर आये, मूने मानस मण्डल मे रास्मरण विगत फिर आये, जोवन का सोया सपना, जग उठा आज यह सहसा,- हिय तल मे सटक रहा है, युग-युग के अमिट विरह सा । उसबो सब जिमने सपने मै देखी सत्यता सकल ससृति की, जो जीवन बिता रहा है, लकुटिया लिये सस्मति को, जग कहता है, है बडा डालने वाला, कहते है सुध-बुध बिसरी पीकर जीवन का हाला, जग को वह क्या समझाये जग है आखो का अधा, जग समझ बूझ वाला है, वह ना समझी का बन्दा । हम पियायोजनम के