पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७२

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सपने ही को कोटा में, सब जीवन बिता दिया है, माया यी मृदु - मृरत पे, मर्वस्व निमार पिया है, ठिन खिली धूप जगमग में, छिन में अंधियारी आयो, यो निपट धूप - पहियां मे जीवन की अवधि वितायी, थोडी-सी बाकी पडिया, अव कट जाने दो मो ही, मत तोडो गहरा सपना, ओ जी पीतम निर्मोही । डिस्ट्रिक्ट जैल, जावाद १० अगस्त १९३२ पुकार ओ मेरे गोपाल छपीले फुछ ठुनमा दो पजिनियाँ, झुन-गुन-गुन-सा टुन-टुन-धुन को तुम बरसा दो याकनियाँ, पाजनिया किनिणिया मुंज हुलस उठे अज की जनियाँ, में बलि जाऊँ, तुम कुछ ठुमको, डोलो, मम घर - ओगनियां, प्यासे श्रवण, हुदम अनुलापा, धुन सुनने को नूपुर की अहो, होले जरा टिळक, टुक आज हरो पीडा उर को एक-एर रन-इन मे उलझी आकाक्षाएँ कई - बाई, तुम क्या जानो, निठुर, जगी है क्या-क्या पोडा नयो-नयी रही-सही यह लाज निगोडी वह-वह गयी नयन जल म उझवा-उशक मग जोह रही है कठिन प्रतीक्षा पल-पल में कुटिया के दरवाजे बैठा पाय से कान लगाये मै, निष्ठुर, अब तो आ जाओ, इस घनी मुहू के साये में। डिस्ट्रिक्ट जैल, फैजाबाद २७वर १९३२ ढम निपायी मनमक 1