पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७३

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प्रज्ञान क्या जानूं यम-नियम-उपनियम, सनम, तुम्हारी गलिया के ? यो ही उलझ गयी फन्दे मे मै तो तुम-से छलियो के मे गरीबिनी क्या जानूं तव पूजन की विधिया सारी । मै वया जानें क्या होती है योग - नियम-विधियां सारी ? आँख लगो, अरमान जगे, अब कहते हो कि नियम पालो। अब तो आन पड़ी हूँ दर पे जैसे जी चाहो टालो विस्ट्रिक्ट जैर, फैजाबाद २४ नवम्बर १९३२ स्थिति वैचित्र्य बुछ हिसाव नहीं कि क्या-यया है मेर अतस्तल में, वया गणना है स्तिनी बातें फंसी हुई इग दल-दल में? आकाक्षाएँ डूब गयो हैं कितनी ही इरा हिय-तल में? शास नहीं कितने बुदयुद्ध है उठते इस पक्ति जल में' हिय मे उत्पल है कि उपल है। इसरा भी दुख मान ही इम हिय-थल की उथल-पुथल पर जग देता है ध्यान रही मरी भयो यण्ड- म है आह भरी जग को, पौर जाा साना है पोटा मेरै गदा गग यो खोच-सान होती है बैठे हर गले को, रग-रग पी, तब भो ही गुनाई देनी या गले मग मी, गर मष्ट पिजर में या पोर अपारस Tो माग गणी भाजप युरिया। IV हम दिखाया