पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७९

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पौर सहमी है यह जो यू- गैर रहा है पालो मे। होगी यह पपी जो उलयो हो न पालो मे हम नौमिचिये लहर मा गये - देश-देस क्रोडा इनकी, सूत्र फेम गये दुण्डलियो में, अनुभव पी पीडा, इनकी, अरी फर दो विप ने मवर की कड़ियाँ न्यारी-मारी योलो हिमने मांग भरी यह सजनि, तुम्हारी सुफुयारी ? मेंदुर को सीधी रेखा मह, सीची बडी चतुरता से, अलि, सिने अणिमा छनौली दो है आतुरता से पया धारे हो मस्तक पर सखि, इसका तुम्ह पता क्या है लोहित, विजित, हमारे हिम को यह तो अरुण पताका है। करुण हमारी भूफ वेदना शष निखर आयो सारी, बोलो किगने माग भरी यह सजनि, तुम्हारी तुकुमारी 7 याज निमित ब्रह्माण्ड हो गया- है विभक्त दो भागो में, जथवा दो रातें उलझी है अरण उपा के घागो में? १५४ हम विपायी जनम के