पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३८१

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घडियाल वजाने वाले मन-धन बारते चलते जा रहे है ये बैठे-ठाले, क्या पागल हो गये आज घडियाल बजाने वाले ? सुबह शाम, दिन-रात गिन रहे है ये बीती घटिया जमा हुए है यहाँ निठरले देखो, बढे निराले। मुगरी लेकर धमा-चौकडी मचा रहे मनमानी, या एकत्रित समय - कोप पर डाल रहे है ताले । काल वली के टुकडे टुकडे कर के ये महते है "इतनी तो निभ गयो अर, घोडी सी और निभा ले।" क्षण-क्षण चली आ रही है अति निकट अन्त की घटिका? अरे आखिरी पड़ी टली है कभी किसी के टाले २ रिस्ट्रिपट गैल, गाजीपुर १० जनवरी १९३१ राति, २३० - पत्र मेरी रानी, पानी पानी हुई सियाही यह मेरी, हाथ कप रहे, लगा रही है निष्ठुर कलम वृथा देरो, पेरी है आने गरको ने, चिर, दुयिया हिय म डायी, लियूँ ? मलिवू ? क्या लि ? कैसे लिवू न समन्या पिर आयो, ३५९ एम पिपाया अनम