पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३८३

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छाले पड़े हुए है, क्यो पड जाते हैं छाले । अनुरागिणि, विरागिणी बनकर विचर रही है लगन यहा, घूम रही है भसम रमाये अलमस्तानी मगन यहाँ, कहाँ - कहा यह अलख जगाती फिरती यो पगली - सी है, दिग्पने मे विक्षिप्ता - सी है. पर, यो भली - भली - सी है, सन्यासिनी यनी फिरती है अन्वेपण रत लगन, अली, सूनी है, धूमायित भी है देखो उसको गगन - थली। प्रमदे, भ्रम देखे है, सम्भ्रम भी देखें इन आखो से, आँख लडायी हमने भी दस - बोसो से मा, लाखो से ? कुछ दुनिया हमने भी देखी हम भी इधर - उबर भटके पर क्या कहै ? तुम्हारे दर पर ही आकर लाचन भटके । तव से कुछ ऐसा जुनून यह छाया है अलमस्ताना, अपने पागलपन पर हमने जाना कभी ने पछताना । यह अपने रसज्ञ हिय से तुम चुपके - से पूछो, याल, पाले बडे नाज के थे, क्या जाने जग के रंग-बैंग य? नेह - भरे भोले - भाले हैं, रखते सदा व्यथा सँग ये, हिम - फुलवारी में तुमको ये पारिजात - से पूल मिले, आवपण - संघर्ष - विकपण - वलरियो के कुसुम खिले । वाले, सुनि, रजनियाँ निस्तब्धा जब सत्र मानस पै गन्य गगन म लहर कुछ घहगती है, परन में छा जाती हैं- बम विषपाया जाम