पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३९३

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एक घट एक चूंट, हाँ एष पूंट, बस ६ जाओ है प्राण, मुरे, तनिक समीप अधर-सम्पुट छ आओ, तो प्यास बुढो, एक पूंट उन अबरा का मधुरम ल लने दो कृपया, एक बूंट देकर, स्वामिनि, यह प्यास बुझा दो, परो दया, तडपा हृदय, गला चिटपा है व्यापूर मन, जीवन सूखा, एक बूंट, हा एक पैंट म, लहरे रोम - राम मूखा। आये पुले, मुंद आये, यो साधे नयनी मोठा, धक् धक करते हिय म पारे त मयता को मृदु पोडा, ग्रीमा उठा, अरण, मादवता लिये नापोलो म आओ, झूम-झूम झुक आआ, मेरे याहुपाश में बंध जाओ, ललित - लाज से झगडा परती आतुरता का सग लिये, एक पूंट, हा एक पूँट म सरसा दो मधुरग, प्रिये । एक चूंट की मादर स्मृति में डूबा मेरा जग सारा, अव तो सूने मामम - मग म आन बहा दो रस - धारा, मेरी लधु माधवी करपना, एवं बूंट फी मतवाली, कब से खड़ी हुई है अपनी लियै हुए साली चाली, आज अधर से अपर हमारे य प्यारी मिल जाने दो, एक घूट, हा एक पूंट म दो दिल मिल हिल जाने दो। रल पथ टागस दादावार २५ सितम्बर १९.१ ३६४. हम निपपाया जनगक