पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३९५

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व्याकुल गया ही अदा तुम्हारी, यया हो पागल तुम्हारा 1 दिन-गत साजते हा जीवन वा दस सहारा। नत ग्रीव क्या हुए हो । लोनन उठा ने दसो,- अब ढल सुवा है सूरज, है शन्य पय सारा ! घनघोर भामगाएँ'- हिंग म उमड घुमडती, बरसायेंगी पभी ये रस पी अट घारा? पागल समझती तुमका दुनिया 'नवीन' भोले, तुम ता बताओ लेकिन उपनाम क्या तुम्हारा सोयीन तुम बडे हो, उनको बुला वह तो कहो कि तुमने उनको यहां निहारा, सरकार, न आआ तो नूपुर तो मत बजामो- इससे तडप उठे है भानुल हृदय हमारा इतना तो करा मालिक झिलमिल की ओट हो से-- मेरी सदा परदा हिल जाये कुछ तुम्हारा डिलिवट जेश गाजीपर २ अनवरी १९३० हम पिपायों सनम क