पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४०

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यह लालसा, एपणा, इच्छा, ये कामादि प्रमाद, इन सबका कर सके आज यह मनुज पूण अवसाद । बल दो, प्रिय, हो गया बहुत, कर दो समाप्त यह खेल, अब तो दो इस चिर याचक को मधुमय मन प्रसाद ।। देद्रीय कारागार, बरेली १ फरवरी १९४४ नेशयाम कल्पमान निशि का अति क्षुद्रयाम आज हुआ करपमान, अस्थिर, चल, चपल निमिप आज हुआ युग समान । अस्थिर मे होता है जब शाश्वत समावेश- सन्मय हो जाते है जब अनित्य काल, देश,- तव होते हैं विलुप्त अचिर चलन-कलन क्लेश सुन्दर, शिव, रात्, अकाल रहता है एक शेष 1 पाता है परिवर्तन तव चिरता का प्रमाण । चपल निमिष युग समान। बम विषपायी जनम के ३ .