पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४०३

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पिला दो मुराकाती, मधु छलकानी सी मगि, तुम सापो धन आओ, निज मधु-भरी सुराही देने, मदमाती वन-छन आओ, सौधा नही, तनिक टेढा-शा किये गधृभरा सुघट नया, सजनी, यौवन के पावस में सरसा दो कुछ रस कृपमा, अजलि भर-भर खून पिला दो. मेरे मृण्मय प्राण जिला दी, कुछ क्षण वा - होशो को- वे - हाशो न मिला दो, सुरस दान देती आनुर-सो, राजगो, मेरे मन भाभी, मुसकाती, मधु छलकाती - सो सखि, तुम साको बन आमा, राग सूखे प्यासे अग सग पा, मधुरै, हग - भरा कर दी, मेरे रोते अतरतर मे तन्गा मधु पीसा भर दो, सुध - बुध के क्कश व धन को छिन - मिन कर दो कृपया, लोक-लाज या मधु-बार में आन बहा दो, थरी दया, पाया बहूत ज्ञान का परिचय, में खूब यह जसमजस दूर हटाओ, मानो मेरा अनुनय, अपने नस से मधु रत का यह भरा कटोरा ठनकाओ, मुसकाती, मछलकाती मी सखि, तुम सा बन आओ, हग विपपाया नमक नोति-नय, इतना ३७४