पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४०४

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छा अपना ऐसा रंग जमा दो, कुछ ऐसी रस-घार बहे- कि बस तुम्हारा ही दीवाना मुहो गकल ससार कहे, उमडी नदिया सो बह आवे तन्मय तान तरगमग्री, उतरावे तादात्म्य भाव की उन्मत्तता अगग नयी, एक खुमारी - सो आखो में भस्ती आत्म विल्मरण तो रजकण हिरा अपनी निधि पा जावे, ऐगो ढलवा दो राजनी, मत रीता प्याला सनमाओ, मुराकातो, मधु छलकाती-सी सखि, तुम साकी बन आओ। जाये, आवे, आ 2 मन के मथित कथित भावो मे चकित नया ससार जगे, मधु रस में सरबरा हो ऐसे दे दो प्याले प्यार पगे, जिन व्यालो के एक घंट मे नये चाँद-सूरज चमके, दे दो ऐसे अतुल मद भरे जिनकी नय आभा दमके, है यह दुनिया यी पुरानो, मुशे गयो गढने दो, रानी, बाग तुम्हारे मधु प्यालो से, नयो सृष्टि होगी बरयाणी, पुरप बना मे, प्रति वनो तुम मदमाती यन-ठन आओ, मुसकाती, गधु छलयाती-सी मसि, तुम साकी यन आओ। हम विपपायी जनम के