पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४०५

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नाविक निस घाट औ' घट पे तरी- अटको है आकर के कहाँ ? यह लूगती,. बुछ भूगती,- है कगार क्षेत्री उठी महा । है कटाव का बटा जोर यो विकराल सी य' कगार है घरा के जजर नाय, पटकी है लाकर फे कहाँ ? यह टोला सम्भ्रम का सडा है नही किनारा यहा पही, अरे लेने वाले, संभल जरा, तू फैसा है आकर के यहाँ ? नही लगरो पी पहुँच यहा,- न दररत का कोई आसरा । सपने का मोहक जाल है सब ओर फैला जहा - तहाँ । घल लौट नाविक, ऐ मेरे, तरी डाल दे मंझधार में लहरी में, भंवरो में पटी बहने है नया यहा - वहा । डिस्ट्रिक्ट जेट, गाजीपुर ८ जनवरी १९३१ ३७६ हम विषपायी जनम पे