पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पढे चलो टूट गया, हा टूट गया-यह मेरा सुन्दर मपना, छूट गया, हा छूट गया-सा राग रग रस अपना, Fठ गया, हा ठ गया-अपना माशूक निराला, फूट गया, हा फट गया-यह अलमस्ती का प्याला, फूटा प्याला, टूटा सपना, सग लिये इटलाते, बड़े चलो, हाँ तढे चलो तुम पे नवीन मदमाते । था गणेश कुटीर, कानपुर ७नवम्बर १९९१ B दिवाली जगमग-जगमग हुआ आज यह टूटा-मा घर आली, इतनी मृपा? संजोयी तुमने आने यहां दिवालो। ज्योति जमाने वाली, मो तुम दीपक-याती वाली, सूर किया जो आज इधर भो छिटया दो उजियाली । गेरी सध्या की अंधियाली की तुम सुदर गली, लहराओ मेरे यांगन बन दीप-शिला मतयाली। मुमे बहुत कुछ लिखनो हैं भोवन गायन पो कढिया, भला दिया-आलोषित कर दी तुमने श्यामल घटिया, तुम सिरहाने बैठो - में लिय५ कुछ अपनी बीती, देखो तो कैमी है गाया यह मेरी मननीती, दम दिपापी नामक YG २००