पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४०९

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आधे सुले, मुंद आये दृग, यो तुम मुझे निहार रही, विकट छलकती उन आँसा से अपना सब नुछ यार रही, ओ मेरे प्राणो पी पुतली, बडा विक्ट यह जीवन है नित्य लोक सग्रह मै आडे आती है दृगधार नहीं ? आकादा, एपणा, वासना, सुख का नित स्वाहा स्वाहा। और सनातन निदयता से मन या निपट दमन,हा हा- यही, यही अगि धारा पर है, मो मेरी अच्छी रानी, बसे कोई कर सकता है, इस जीयन में मनचाहा 2 कैसे दियला िपट्टे है मेरे हिय में भी छाले? तुम्ह चाहता हूँ कितना, यह मे जतलाऊँ बाले? कितु चाह का दाह मात्र ही इस जीवन का लक्ष्य नही, क्तव्याकर्तव्य - सत्त्व -पढे हुए हैं हम पाले। गेरा जीवन तो आरा ही जासू को है एक लडो, पर, आसू का उपल बनाना, है बस, यह साधना कडी, आज हृदय गो अमा तरलता अश्म रूप वन जाने दो, ओ कलिकादि, जनर-भर लागो अपनी आखें घडो घडी। आज ज्वार आया है हिय मे? हाँ तूफान भयकर है, मुझ संभालो, प्रिये, तुम्हारा यह प्रवाह प्रलयकर है, वेधी हुई है ब्रह्मपाश के प्रच्चे धागे मे जगती, पो ही रहने दो न बहाओ, यह बन्धन शुभ शकर है । आज पान देते हो देते, छल्या नयनो से पानी, देख तुम्हारी मह आतुरता मेरी मति-गति अकुलानी, मेरे धीरज को भी कोई सीमा है, कुछ सोचो तो? देख अब्रु ये, भडक उठमो मेरो भाउक नादानी। हम निपपाया जगमन 350