पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निमन्त्रण उष्ट आ बैठो, भरी नहलिनी, है मेरी डालो सूनी। अपने श्वास - पवन से इसको सिहरा दो तुम दिन दूनी । चहको कोई तान, भैरयो नव स्वर-मजूपा खोलो । कोई गान, भरी, अलबेली, छोडो, पुहू कुहू बालो। घोलो रस, नीरस पादप की सिहर उठे रोमावलियो । डालो-डाली हो मतवाली, फूल उठे आतुर कलियां । मेरे मानस मगन-गगन मे सघन अवेरा फैल रहा। अन्धकार मा भार विकम्पित स्मर दीपक यह झेल रहा । तुम आओ मम दिङ्मगल में नव उपासी विहरा, लली। अलसाने लोचन - पुट खोले छा जानो हम देश अली । नये सवेरे के शुभ क्षण में भर दो ये रिक्ताजलिया । लोल लोचनो की लाली से रजिन हा जीरन-गलियों । मेरा हिय आकाशशून्य है, ध्वनि विरहित, लय-हीन बना। शब्द-हीन निस्तब्ध भाव से है वह तो अति क्षीण मना । यहाँ वायु म तरल तरगे उठत्ती नहीं अहो, सजनी । लहरा दो इस घटाकाश को कुछ तो आन कहो सजनो। रजनी यहा, यहाँ अँधियारी, निस्तवता यहाँ छायो। यहा गुनगुना दो, फैला दो, आकार आशा गनभाई। डिस्ट्रिक्ट जेल, गाजापुर हम विपपायी जनमक C.