पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४१८

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ये हैं वे आईने जिनमे भैनो तुम्हारी छवियाँको । आन सुचारी अलकावलियो अपनी चचल प्रतिमा को। सिर से साडी का परला पर खिमक रहा है गरा - जरा, आईनो आकार देसा कैसा अल्हडपा निखरा। मृदुले, मम हम् के मुरी में चभवी तव सुकुमार छटा । दपण पाछो, अचल से तुम असफलमा - रग हटा - हटा । म आरे, बंडो सन्निधान मम, गूथे येणो अलये. कधी बर्ने अंगुलिमाँ मेरी, गेह - फुल उमड छलये, मांग माढ हूँ मैं, झुंझलाधार तुम बालो को उलशा दो। इसी तह मम हिय की गाठे सुयुमागे तुम सुलशा दो। उलझ सुलवा लाचे लोलुप पंच जूझें नाले भीराले, भर लेने दो माग वेदना के सेदुर है, ऐ वाले। हिम का हार कहा से लाऊँ ? भुज-बल्लरिया। पहना ई, हगने दो यदि ये, हने सगी छोहरिया । हम विरुपाची शनमक ३८९