पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लोक लाज का भास रहेगा- यो कब तक मग मे अटका? सान, तोट दो तो यह वन्धन दे कर एक विमल झटका । मरी यह गिगार-मज़पा कर - कमलो मे अर्पित है । जरा सोश के इसे देख लो फैसी वस्तु ममपित है। मोच रहा हूँ आज फिन्हा दै रो मे मृदु किकिणियाँ,- ऐसी निविणिया जो चमके ज्यो मुक्ता गुणित मणियाँ । इसीलिए गढता जाता हूँ कविताओ वी ये वडिया,- ऐमी कड़िया जो बन जाब नेह शृखला तुमुक ठुमक तुम चलो, बेज वठे, मोडी मोठी पाजनिया । खनना यो कविता की कड़ियाँ रानी, मम हिय-आगनिया । स्ट्रिक्ट जेल, गाजीपुर १६ दिमघर १९३० लशियां। . पराजय पापालिक सेव्य भूतनाथ में शरीर की विभूति उडती है जहा रज अषण-पण में, चट चद् हूहू हा-हा परती ज्वालाएँ जहा भेद भुला देती य सीवन मरण में, हम पिपाया जममक