पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४२०

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लक्ष-लक्ष आगाएँ, निराशा, ये लता-लक्ष एक सग सूझे जहाँ धनधोर रण मे, वाट जोहती है स्वय चराचिता मेरी वहाँ आकाश मण्डप तले शमशान प्रागण में। मोचन दिशा केवण का मधुर मधु • मैद उतर गया सो कैसे जाने में अजान नैंक, मुघ- बुध बिसरा के, भर-भर अजली वेहोशी मे कर गया हूँ म बया में पान नंक, अटपट पाँव पड़ते हैं, बात फैल गयी भाकर, संभलती लोक लाज के सुजान, नंक, भूल के, नो मे नाही घूमन जाऊँ उधर टिकी है जहाँ चन्द्रिका - सी मुमकान नैक । गिरते, पड़ते, लूमते, झुक्तै, ऐ 'गयोन', चलो उधरी को जहा लय है प्रणय का, निदय नियम जहाँ भस्मक स्वरूप लिये नाश करते हैं अनुनय का विनय का, इस होगो मे इतना तो होश रसना कि पराजय ही में मजा आता है विजम का, भूल मत जाना हे 'नयोन' पुरातन - सत्य सृष्टि के विकास में छिपा है तत्व लय का । विस्ट्रिपर औल, कानपुर नवम्बर १९९० इन विषपायी जन्म के ३९१