पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४३२

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फोमल चरण तुम्हारे, बन्धुर मेरा जीवन-पन्थ, तुम नाजो को पली, नही है मम विषदा का अन्त, अन्तयन्त जीवन,-अनन्त है सजनि, तुम्हारी चाह, होने दो हौले हौले इस दग्य हृदय म दाह, कैसे पहूँ कि, स्वामिनि, चल दो इस मोजी र साथ कसे याहूँ कि भाओ चल दें लिये हाय मे हाथ डिस्ट्रिक्ट जेग, नाडीपुर ५ दिसम्बर, १९२० > 2 दुपहरी आन पहुँचा जीवन मध्याह्न, तज रहे दोपहरी में प्राण, शोमा चढ आया यौवन-सूय चलाता सोरो तोखे वाण, सिमिटकर चरणा मै छिप गयो- लोका-लसा की छापा दीन, उमडती आवाक्षाएँ हुई- स्वेद के कण-पण म तरलीन, खून पानी बन वन वह चला, भाल पर फैला मुक्ता जाल पथ सुनसान, सामने खड़ी घेरकर चिन्ताएं विकराला हम विषपायी जनम क ५०३