पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४४०

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गरजे मेरे सागर पहाड सागर, गरजे मेरे पहाड सिंहो को सो करके दहाड | बहन, गम्भीर गहन, करते है जो बडवाग्नि कहते है मानव, जाग जाग, सुलगा दे ज्याला सव दहन बाधाओ को जड से उखास सिंही की-सी करके दहाड। मेरे भूधर,- मजन करते है हर-हर-हर, बोले , मानव तू क्यो उदास' तू भी गजन कर इहर-हहर। इस लौह भीम को दे पछाड़ सिंहो की सी करके दहाड ? सरवर, मेरी सरिता, चिर स्नेहमयी, पुण्याचरिता, बाल कल कल स्वर भर बोल उठी, यह अमल नवल जीवन भरिता, रे मगुज, खोल अपने किवाड सिंहो की-सी करके दहाड 1 हम विषपाया जनम क ४११