पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४४१

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मेरी आंधी, भम मलय पवन, छू • छूकर मेरे युगल श्रवण,- है पूछ रहे मुझसे क्षण - क्षण, क्यों हुए भग्न तव सुखद भवन ? किसने यह घर डाला उजाट, सिंहो की-सी करके दहाउ? उठी. मेरी धरती हिल डोल उठी, निगति मै गति - रस घोल उठी, अन्तस्तल में कल्लोल धरती माता यो बोल उठी सुन रे, कडके मम वृद्ध हाट 1 सिंहो को-सी 1 करके दहाट मानव क्या तू न सुनेगा यह,- युग - याणी का गजन अह - रह ? यह सब - नाश - सन्देश अभय, यह निर्वाणाद्वागन दुबह, तू बन विजयी, जय - ध्वजा गाड सिंहो को-सौ करके दहाड 1 यह शताब्दियो का पाप महा, एकत्रित है बेमाप यहा, इसको तू खोद यहा दे, रे, तेरा जो यह अभिशाप महा, सब परिसाटी का वक्ष फाट, सिंहो पो - सी पर दहाड हम षिषपाी जनमक १२