पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४४२

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तेरा स्वरूप, जो अति अनूप वह विगड बना है अति गुरूप, तू अपना स्वामी स्वय, अरे, तेरा कोई भी नहीं भूप। अन्तस्तल की ज्याला उभा सिंहो को - सी करके दहाइ । दुर्दम रण - चण्डी त उठे कर महा प्रलय सकेत उठे। संवस्व-नाश का द्र रूप नव-नव निर्माण समेत उठे, आये विनाश की एका बाढ, सिंहो वी - सी करको दहाङ । डिस्ट्रिक्ट जल, उनाव २२ अप्रैल १९४३ तू विद्रोह रूप, प्रलयकर। अरे, अरे, ओ निपट निराशा को स्वासें भरनेवाले, अरे पराजिता अरे पराजयवादो, ओ मरनेवाले, ओशस्ति चितवनवाले, ओ आत्म-रूप-विग्मृतिवाले, ओ विजयच्छुक, ओ गानोत्सुक, ओ निदान-म तिवाले, दूर पार से आज आ रही अनल-गान की तान नयी, आज बामु में निष्पन्दन है, कण-कण म है जान नयो । हम विपपापी जनम Y1