पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४४३

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तू नाशक ध्वनियो का गायक, तू विकराल कात्ति-द्रष्टा, तू विद्रोह रूप प्रलयकर, तू है अनल-राग सृष्टा, तेरे प्राणी मे तडपन है, नीच भावना अब पोसी? यह विश्वासघात अब कैसा ? दुष्पतिया वयो, अब ऐसी? कर दे क्षार क्षार अपनी इन प्राण मोहिनी कृतियो को, खण्ड-खण्ड कर दे, रै मोही, निज निवल सस्मृत्तियो को । ओ बरसो से शिथिल पाश म जकडे रहने वाले, आत्म दीनता की दाहकता मे नित दहने चाले तू, ध्रुव विश्वासान्तब्याला से भर दे अन्तरिक्ष जल, थल, आज अनल-ताण्डव होने दे गई जाने दे तू हलवल, तत्व निखर आये, असत्य यह होवे भस्मीभूत सभी, अग्नि-परीक्षा-विधि पूरी हो, जग हा पावन-पूत अभी। ध्वस-कार्य यह अभी-अभी हो शुरू हुआ है जरा-जग, गत प्रणालियो का बन-उपवन अभी बना है हरा-भग, तुले इसे उन्मूलित करना है करना है भार, सखे, तुझे मेटना है जगती के तल से सब अविचार, सख्खे, अनल गीत गा उठ तू निभय, घिर आये ज्यलन्त ज्वाला, तू पहिना दे जग-ग्रीवा मे, यह अगार की माला । शालो के फूलो से सजित सुख-शय्या हा जाने दे, भर ले अगारे परपट मे, हूक एक उठ आने दे, अरे, अकमण्यता शिथिलता भस्मसात् हो जाने दे, अग्नि चिता में विजित गाद को तू अन ही सो जाने दे, पाहि पाहि ? रे, पाण कौन सा आजप्राण की हाली है तेये दाहक स्वर-लपटो में म्दय पण को होली है 11 ? v हम विषपापी गनम क