पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४४४

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गरल पियो तुम । गरल पियो तुम 11 आज रुद्र ललकार रहे हैं अमृत पुत्र, लो गरल पियो तुम, आज अगर वेला आयो है गरल पियो, चिरकाल जियो तुम, ओ तुम चिर जीवन के प्यासे, सुन लो यह भैरव आवाहन, हिम गिरिवर के तुग शूग से गूंज रहा है घण्टा धन एन । प्रलयकर शकर बैठे हैं खोले वरदानो की झोली, जागो, ग्रहण वारो वर उनका, वडे चलो टोली की टोली। हहर हर हर शिखर-शिखर से गरज उठे हैं आज पिनाकी, आमन्त्रण है आज सभी को, अब क्या चिन्ता भव-याधा को? हिम-आच्छादित शिला खण्ड सर प्रतिध्वनित हैं उनके स्वर से, भूधर के सर पाय-देश भी अनुकम्पित है स्वर हर-हर मे। हर-हर करती महर सुरखुनो, ले आयो सन्देवा सव-हर, रे, गरगे है आज महेश्वर, कांप रहे हैं गिरिंगण, गहर 1 जगती का कण-कण कम्पित है सुन यह महानाश की वाणी, भारत के रज-फण कापे हैं सुन सुन यह वाणी करयाणी, आज महाकालेश्वर का ही प्रतिनिधि एक यहा आया है, जिसकी छाया परम अमृत है । महागरण जिसको माया है। अटल हिमाचल से कुमारिका कन्या तक विस्तृत जन-पद मे है उसका सन्देश प्रचारित, प्रति गिरि में, गह्वर मे, नद में। देखें कोन वीर सुनता है गरलपान के इस गर्जन को, नोलकण्ठ रे भव भय हारो चिर मगलकर इस तजन पो, चिर जीवन के औघडदानी आज दे रहे भरण-संदेसा, सर्व प्राप्ति के इच्छुक हो तो ग्रहण करो यह हरण-संदेसा । जम विपपायी जनग के १५