पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४५७

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. लिखी हुई है अहो तुम्हारे पदास्थल पर अमिट कर कितनो मादयता, कितगो दाहकता, कितनी विकट न्यथ ये अनेक बलिदान, प्राण को यह, उत्सुक चटपटो भल रे सुवर्ष, देखी है तुमने, निपट वीरता गली-गलं अनाचार, गाली, दण्डे की, पर यातना देख यह मय रख देना उन, अलक्ष्य चरणो में झुणे दूण भूत के स्वप्न दुर्ग का मृण्मय सिंह द्वार खुला फहरा रही कांगो पर, विस्मरण ध्वजाएँ मे मृदुला, पढे पेशयाई को आत्म विमजन के ये दरबारी, दर्शन करने को आगी है मदिर भावनाएँ सारी, हे सुवप नव हप आज सर ओर महाँ उन्मसित महाकाल का देश तुम्हारे स्वागत मे उरलसित द जाआ, सो, थकित मानवता का, इतिहास बनाने को, जाओ, सन्त, निमा बोले, विधम अवकाश मनाने को, एक बार गिन गिनकर अपनो, कृतियों की दुनिया छोडो, जोडी माता निवृति से, आविष्कृति को मणियाँ फाओ, हे अशात, विधात घाट की, श्रीर छोड दो रिक्त थाशा और निगशाओ को छोड़ चलो अपनी गठ डिस्ट्रिक्ट और गाजीपुर ३१ दिसम्बर १९३०