पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४५८

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विप्लव गायन कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये, एक हिलोर इधर भे आमे एक हिलोर उपर से आये, प्राणाने लाले पड़ जायें, जाहि - पाहि स्वर नभ मे लाये, नाग और सत्यानाशो का धुआधार जन म छा जाये, वग्मे आग, जलद जल जाये भस्मसात् भूधर हो जायें, पाप पुण्य सब - सद् भावो को मूल उड अठे दायें - याये, मभ वा वक्षस्थल पट जाये, तार टूक - टूक हो जाये, कवि, युध ऐमी तान सुनाआ जिससे उथल-पुथल मच जाये, माता की छाती का अमृत गय पय कारकूट हो जाये, आँखो का पानी सूखे, हाँ, यह खून की पूंट हो जाये, एक ओर कायरता काणे, गतानुगति विगलित हो जाये, अन्धे मूढ विचारो की वह अचल शिला विचलित हो जाये, और दुमरो और अंपा देने वाला गर्जन उठ धाये, अन्तरिक्ष मे एक उसो नाशक तजन की ध्वनि मॅडराये, कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उबल पुथल मच जाये। नियम और उप नियमा के ये बन्धन टूट - टक हो जायें, विश्वम्भर की पोषक वीणा के सन तार मूक हो जायें, शान्ति दण्ड टूटे, उस महा रुद्र का सिंहासन पराये, उसबो शोपक श्वासाच्छ्वाम, विश्व के प्रागण मे पहाये, नाम गाहा, महानादा, की प्रलयकरी आस युल जाये, गरि, कुछ ऐसी तान सुनामो जिमसे उथल पुथल मच जाये। हम विषपायी जनमक ४२६