पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४५९

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"सावधान ! मेरी वोणा में चिनगारियां आन बैठी हैं, टूटी है मिजरा, मुगलागुलिया ये मेरो ऐंठी है, कण्ठ एका जाता है महानाश का गीत रद्ध होता है। आग लगेगो क्षण मे, हृतल मे अव शुन्य युद्ध होता है । झाड और झवाड च्याप्त है इस ज्वलन्त गायन के स्वर से । रुद्ध गीत को शुभ तान निवली है मेरे अन्तर तर रो। "कण कण मे है व्याप्त वहो स्वर, राम-रोम गाता है यह ध्वनि, वही तान गाती रहती है बालबूट फणि को चिन्तामणि, जीवन ज्योति लुप्त है अहा ! सुप्त है सरक्षण की घड़ियाँ । लटक रही है प्रतिपल मे इस नाराक सभक्षण की लटिया। चकनाचूर यरो जग यो गूजे ब्रह्माण्ड नाश के स्वर से रुद्ध गीत को ब्रुड तान निकली है मेरे अतर तर से । "दिल को माल-मसरल मेहदी रचवा आया हूँ मैं यह देखो- एक एक अगुल-परिचालन में नाशक सापडव का पैग्यो। विश्वमूर्ति । हट जाओ, यह वीभत्स प्रहार सहे न सहेगा। टुनडे - टुकड़े हो जाओगी, नाश-मात्र अददोष रहेगा ॥ आज देख आया हूँ जीवन के सब राज समझ आया है, 5 - विलास में महानाश के, पोपक सून परष आया हूँ, "जीवन गीत भुला दो कष्ट मिला दो मृत्यु गीत के स्थर से। रुद्ध गीत की मुदतान निकाली है मेर अत्तरतर से । जीवन में जजोर पड़ी सन-मन वरती है मोहक स्वर से- अदर जाग छिपी है इसे भडक उठने दो एक बार अब, दहाल जाय दिल, पैर उखडायें, प जाय पालेजा उनका, नाश स्वय कह उठे काटक नर उम गभीर कामे स्वर से १३० दम विषपायी अनम के