पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४६१

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तन मन से तुमको प्यार किया तन-मन से तुमको प्यार किया, धन से कैसे भरते, बोलो। धन से न कभी उगियत रही, सम्पत्ति कहाँ परते, बोलो है तग जगह इम जोबन मै है यहाँ ययत की भी तगी, योटे-से दाण, छोटा बरतन, इनभ मया • मया भरते चौलो हमने बटोर दीवानापन, लाबर बनम खखा, मारो, दुनियादारों के प्लेसे तो साया हमने घना, यारो, लेकिन इस नि साधनता में है एक लुत्फ कुछ अपना हो, यह गया है, मया बतलामें हम? गेंगे ने गुड चक्खा, यारी, कह गाते हो हम असफल हैं इसलिए हुए हम वैरागी, कह सकते हो हम पराभूत हैं इसलिए धनते त्यागी, पर, प्रेम नहीं है विजिराबाद, है आदि प्रेरणा वह मन को जिसने सनेह-पूनी तप ली, वह तो सचमुच है बडभागी, इक हैरत होतो है हमको, कुछ पतरस भी आता है,- मुख्तसर जिन्दगानी र यह मानव केपा गुरविा है, तानाशाही, नाना गर्दी, खोजी, यह बेईमानी । गर आज मरे कल, कल दूना दिन, फिर भी नर यो इतराता है। ये चन्द जिन्दगी के लमहे गर धन बटोरने ही बोते.- गर, इस कोशिश से पा जाये मानव सब फल मन के चीते- तो भो क्या दिल भर जायेगा सोने-चादी को अनशन से? मदि हिम टटोल कर देखोगे, पाओगे अपने को रोते, ४३२ हम विश्पामी जनम के