पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४६३

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हम जमजात बोटम ठहरे, हममो पर नायी अक्ल जग। इस दिन भी तो उन सबके हित हम हो जाते हैं विरल जरा, ऐसा युछ लगता है गोया, अपने हो दिल के टुरटे यो अपना - सा पर पाने में हम हो गये यहाँ पर यिफल जग, हम पास बड़े जितना उनके वे उतना हमसे दूर हुए, यत्सलता, स्नेह, दुलार प्यार सर उनका नामजूर हुए, हम थे मुगालते मे अब तक अब ठेग लगी, तब होग हुना, इक बरी आन के लगते ही हिम के सम्भ्रम ये - नूर हुए, फिर भी हम तो हैं मस्ताने, है हमे न स्वाहिल दानो की, हम नही भिखारी दर - दर के, परवाह न मिज अरमाना की, हम अलख निरजन के वंशज, निज गनोरयो के हम हता, अपना सब कुछ देने में ही है वक्ता इन प्राणो की ? श्री गणेश पुटीर, दानपुर २ निगम्बर १९२८, राति २ बजे ४१५ हम विषपायो जनम के