पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४६४

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सम्माषण खूब छनेगो, आज चाद ने खुश-खुश झांका, काल-कोठरी के जंगले से, गोपा मुझसे पूछा हँस कर, कैसे बेठे हो पगले - से? कैसे ? बैठा हूँ में ऐसे- कि में बन्द हूँ गगन-विहारी, पागल-सा हूँ तो फिर यह तो, यह हारी दुनिया बेचारी, मिया चाँद, गर मैं पागल हूँ- तो तू है पगलो का राजा, मेरी तेरी आ,जंगले ले भीतर आ जा लेकिन तू भी पार फैसा है- इस चक्कर के मनाटे में, इसी लिए हूँ मारा-मारा- फिरता है इस सन्नाटे मे, अम्या, चकरपिनी फिरने का- यह भी है कोई मौजूं छिन। धूमना ही है, तो तू जरा निकलने दे दिन यह सुन वह आदाय बजाता- खिसक गया डण्डे के नीचे, और कोठरी मे 'नवीन' जो लगे सोचने और मीये। हिस्ट्रिक्ट जेल, बसोग १९३९ गर मजूर इम विषपायी जनमक ४३.