पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४६६

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प्यार ? क्यों रोते हो, यार? क्यो रोते हो, यार, सिपाही, क्यो रोते हो यार? क्या घर मी चिट्ठी को पढ़कर जीवन लगा असार ? सिपाही, क्यो रोते हो, यार? घर पर विवश छोड आये थे तुम जो मनहर मोत, क्या मालूम हुआ है, तुमको, हुआ वही विपरीत? वया, बम, होने लगे इसी रो ओ तुम अचल अभीत? वडी कठिनता से मिलता है यहा अचत्रल सिपाही, यो रोते हो, यार मुँह देखे की प्रीत रहा है, मुंह देपे को लाज, काई अपनी माग भरे क्या निवासित के काज 7 नित्य समागम पर ही स्थित है अपना मनुज समाज । यह ध्रुव सत्य परक्ष लो, भाई, मत बैठा मन मार, सिपाही, क्यो रोते हो, यार? तुम्ही नही हो यहा अनोखे, निज पीतम से स्यवंत, तुम-जैस है कई, ~ व्यथाएँ जिनकी है अठ्यक्त, निज प्रिय छोट, लाम पर जाते है जा भी अनुरक्त- उनमें बहुतो को मिलता है यही अधिर व्यवहार सिपाही, क्यो रोते हो, पार। बुरा मानने का इराम है, तुम्ही कहा, वमा काम आकर भय बसेंगे हो जय रीक्षा होगा धाम । 'प्रकृति याति गानवी' - समझो यह रहस्य हिथ थाम । यह है दाती बोतवी, प्रचलित है अव नये विचार । सिपाही, क्यो रोते हो, यार? हम विषपायी जनमक 1 ४३०