पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४६७

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सामूहिक उत्थान हेतु है अर्पित जिनके प्राण, - उनको निज का वैयक्तिक सुख क्यो रोके हठ ठान। निवेदितो मे तुमने जब निज नाम लिखाया आन,- तब, अब कहो, दिशकायत कैसी ? क्यो मह हा-हा-कार सिपाही, क्यो रोते हो, यार ? तुम कहते हो अरे! पराया हुआ वही रसखान, जिसने हुलस दिये थे हमको निरम अमित वरदान । हाँ। पर, कब तक बाट तुम्हारी जोहे आतुर पाण? यो, अधर में लटके, पाय तक चला करे ससार' सिपाही, क्यो रोते हो, यार" तुमने पक्का समझ-बूझबर वड-खाबड ऐया पन्थ, कि नहीं दिखाई पड़ता जिसका अन्त । तुमने ओढी जान बूझकर विपदा अतुल-जनन्त, तब क्या आशा कि सग चलेगा कोई प्राणाधार। सिपाही, क्यो रोते हो, मार नया अधिकार तुम्हे कि अन्य पर डाली अपना भार? पथ का साथी हूँढो, ऐसा तुमको क्या अधिकार । तुम्ही कहा, कय हुआ दुकेला इकतारे का तार' तुम भी करते रहो अवेले शन-मन स्वन सचार सिपाही, क्यो रोते हो, पेन्द्रीय पारागार, बरलो २३ अप्रण १९४४ पल्या ? 1 यार ? हम विषपाथा जनम