पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४७०

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गयो भली, गली, दूर पार नआर अन् अनमगनकी तान के माओ यान्ति, बलायें ले लू, अनाहूत आ पास बारो मेरे घर आँगन, पिनरो मेगे गली गडी-गली परिपाटी मेरी, इसे भस्म तुम मर जाओ, विष्ट राजपथ मे मंडराओ जन-पद ग डोला आओ, नयो अग्नि ज्याला भडका दो तुम मेरे अन्तरसर मे अरी, गये, नक्षत्र जगा दो मेरे धूमिल अभ्यर मे। श्री गणेश बुगर, मानपुर २०गिम्बर १९२१ अनल गान अरे, अरे, ओ निपट निया गम दार, दारे पराजित, अरे पगल, नग्न वार, श्री शफित चितवन या अमदनी दारे, ओ विजयेच्छुक, मो नया नियमनिया, माज वायु में निहै, में है। हम विषारी गई जानी। NA