पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४७२

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प्रो बरसो से शिथिल पाश में जकड़े रहने वाले, तू, भाग-दीनता की दाहकता मै नित दहने वाले, ध्रुव विश्वासान्तवाला से भर दे अन्तरिक्ष, जल, यल, आज अनल ताण्डव हाने दे, मन जाने दे तू हलचल, तत्त्व निखर आये, असत्य यह होवे भस्मीभूत सभी, अग्नि-परीक्षा-विधि पूरी हो, जग हो पावया-पूत अभी । ध्वस-काम यह अभी-अभी ही शुरू हुआ है जरा जरा, गतानुगति मा वन - उपवन अभी बना है हरा - भरा, तुझे इसे उन्मूलित करना है, करना है क्षार, सखे, तुझे मेटना है जगनी के तल से सब अविचार, राखे, अनल गीत गा उठतू निभय, घिर आये ज्वलन्त-ज्वाला तू पहना दे जग-ग्रीवा में, यह अगारी की माला । शौलो के फूलो से सज्जित सुख शैया हो जाने दे, भर ले अगारे करवट मे हक लूक उठ आगे दे, अरे, अक्रमण्यता शिथिलता भस्मसात् हो जाने दे, अग्नि चिसा मे विजित भाव वो व अब तो सो जाने दे, जाहि पाहि ? रे, पाण कौन-सा ? आज प्राण को होली है। तेरी, दाहका स्वर लपटो में स्वय त्राण की होली है। हम विषपायी जनमक ५४३