पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४७५

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विस्मृत युग मे थे घोचि वे जिनने अपना देह - दान कर, हरण किया था वृत्रासुर का अन्धकार घनघोर प्राण - हर, एक दधीचि आज आया यह जिसकी याहुताशन - ज्याला,- प्राण-अरणि के संघर्षण से धधको देह बोच विकराला, अस्थि - पुग यह, यज्ञ वैदि-सम, ज्वलित हो उठा आत्म ज्वाल से, चिन्तन मग्न आज यह नरवर घिरा हुआ है ज्वाल माल से। . यह प्रचण्ड होलिका जल रही उसके तपोज्वलित अन्तर मे, फैला है आलोक शोक हर, दृग् दुग मे, अवनी-अम्बर मे, निज तप के उत्तुग शिखर चढ, सुलगा कर प्राणो पो होली, अलख जगाकर रहता है यह चेत। अरी मानवता, भोलो। इसवा तप स देश-दिवाकर चमन रहा है मगनागन में, अरे, रहेगा अब भी क्या तम मानवता के मन-प्रागण में? हम विषपापा सनम YY5