पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४७७

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इन चालीस रोड जनो की आगाओ का पुज सनातन, इन चालीस करोड जनो के गौरव का प्रतीक मृ-पुरातन, इन चालीस वोटि मूको को घन गजन गम्भीर गिरा वह तिमिर-ग्रस्त नालीस कोटि को तेज-पुज चिर ज्योति शिरा यह, मुट्ठी - भर हाडो की ठठरी, वह गान्धीजग मोहन, जय-जय।- प्रागो को रख चुका दाव पर होकर अति नि सराय, निभय । जिनने प्राणो के बदले में सीखा है प्राणो का लेना,- गिनने सोचा है निष्कारण, यो हो, पर को पीडा देना, क्यो न हँगे वै देख-देख यह तिल तिल प्राण-हवन की क्रीडा क्यो न हॅसे थे देख सन्त को जग के शरण सहते पीडा इसी तरह तो कभी हसे थे - वे पेशलम निवासी उनमे पहले विहंस चुके ये यूनानी सुख - भोग - बिलामी। हम भिषपाची जनम